मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

गिद्ध मानसिकता


गिद्ध मानसिकता 
  एल.आर.गाँधी 
हिमाचल में श्वेत्पोश   गिद्धों  की एक प्रजाति की संख्या पिछले छह  साल में बढ़ कर ५० से १९० हो गई है. एक संतोष   जनक   समाचार   है ... गिद्ध एक ऐसा जीव है जो वातावरण की शुद्धिकरण का महती कार्य करता है. मृत लावारिस पशु-पक्षियों को खा कर प्राकृतिक सफाई सेवक का काम करता है. मगर पशुओं को दिए जाने वाले डिकलोफिनाक इंजेक्शन के दुष्प्रभाव  से गिद्ध मारे जाते हैं. अब इस इंजेक्शन पर रोक लगाने से गिद्धों की संख्या बढ़ने लगी है. 
समाजिक मान्यताओं में गिद्ध को अशुभ्यंकर  माना जाता है.क्योंकि यह अपने खाने के लिए जीवो की मृत्यु की कामना करता है. अपने लालच की पूर्ती के लिए दूसरों के अहित की आकांक्षा करने वाले लालची व्यक्ति को भी इसी लिए 'गिद्ध ' उपनाम से बुलाते हैं. भारत में भले ही इन श्वेत्पोश गिद्धों का अस्तित्व खतरे में है मगर  गिद्ध मानसिकता से ओत प्रोत 
श्वेत्पोश राजनेताओं और अफसरशाही खूब फलफूल रही है. बेचारा गिद्ध भरपेट खाने के लालच में डिक्लोफिनाक युक्त मांस खा कर मारा जाता है...मगर ये एक प्रतिशत  गिद्ध- मानस ४५% जनता का आहार हड़प कर भी डकार तक नहीं मारता... गिद्ध अपने पेटू पण के लिए यूं ही बदनाम है ..  एक वक्त में ,अपने वज़न का, १०% के करीब खता है ... संचय बिलकुल नहीं करता. गिद्ध- मानव खाता तो दिखावे को भी नहीं , मगर संचय ...घर की तिज़ोरिओं में ज़गह नहीं तो ' स्विस 'की तिज़ोरिया सही.
एक पुराना शेयर है ... हर शाख पे उल्लू बैठा है ...अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा.... मगर अब तो हर तरफ 'गिद्धों' का निजाम है. गिद्धों की प्रिय स्थली हिमाचल ने ही  देश  को दूर-संचार क्रांति के जनक दिए ...इस महान 'क्रन्तिकारी' ने दूर संचार विभाग को इस कदर चूना लगाया कि शर्म के मारे हिमाचल के सारे के सारे  गिद्ध या मर गए या फिर भाग खड़े हुए...घर घर तक दूर संचार की 'सुख' सुविधा पहुँचाने के नाम पर करोड़ों रूपए की टेलीफोन तारें अन्डर ग्राऊंड कर दी. आज सरकार का टेलीफोन बिना घंटी के बज रहा है और सुनने वाला कोई नहीं... बेतार मोबाईल का राज जो आ गया .. बस राजा साहेब ने दूर संचार की २- जी ऐसी बेतार छेड़ी कि पिछले सभी रिकार्ड पीछे छूट गए ... आप तो गए 'तिहाड़' में 'औरों ' की भी तैयारी है. चलो इसी बहाने खेलो में न सही दूर संचार में लूट -समाचार का नया कीर्तिमान तो बना . 
खेल खेल में हमारे कलमाड़ी जी ने ऐसी उड़ान भरी कि गिद्धों' का सम्राट भी शर्म के मारे 'चोरों के सरदार' की छत पर आ गिरा और हमारी शीला जी को पूरी दिल्ली में मुंह छुपाने को कोई 'बुरका' नहीं मिला. 
अरे गिद्ध मंडली में गिद्धों के सरदार , किरीकिट के जानकार, किसानों के जानहार, अनाज के कीड़े, चीनी माफिया के पालनहार ,पी. डी. एस के डिपो होल्डर , महंगाई के चमत्कार और जिस चीज़ का नाम लें ..बस गायब ... ढूँढते रह जाओगे ... का जिक्र करना तो भूल ही गए .... न मालुम अपने इतने निकटवर्ती  होने के बावजूद.. अन्ना भी इनका ज़िक्र करने से चूक गए ... काश ... अन्ना ही अपने जन लोकपाल चूर्ण में डिक्लोफिनाक मिला दें और सब कुछ खाने के आदि ये गिद्ध- मानुस 'खा' तो लेंगे ही... सभी  भूखे -नंगे भारतीय टेढ़ी तिरछी टोपी लिए मैं भी अन्ना तूं  भी अन्ना की धुन पर झूम उठेंगे.   

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