राजाज्ञा की हवा फैलते ही सर्वत्र भगदड़ मच गया। झुण्ड के झुण्ड कुत्ते भाग निकले। उनके साथ एक ऊँट भी भगा जा रहा था। नगर सीमा बाहर होते-होते बेबस नगरी में गहरी रूचि लेने वाले एक पत्रकार ने ऊँट से पूछा "अरे ऊँट भाई! इन कुत्तो के साथ तुम क्यों भागे जा रहे हो?" हांफते हुए ऊँट बोला "दोहरा संकट है। पकडे जाने पर मुझे ही सिद्ध करना होगा की मैं कुत्ता नहीं हूँ। न्याय तो अंधा है। फिर मुझे ही प्रमाण देना होगा की यदि मैं कुत्ता हूँ तो भी देश-द्रोही नही हूँ। मेरी स्थिति तो कुत्तों से भी बदतर हो गयी है। पत्रकार भाई! मेरा तो बेबस नगरी से यह पलायन अंतिम ही है। हो सकता है कल इन कुत्तो का दिन बहुरे और बेबस नगरी इनका स्वागत करे।" यही है बेबस नगरी एवं उसका अंधा न्याय ।
जहाँ शक्तिशाली लोग सत्य एवं झूठ की परिभाषा बदलने में लगे हों एवं समाज में नैतिकता उन्मूलन की होड़ मची हो वहा न्याय को भी विवश होते एवं उससे लोगो का विश्वाश उठते देखा जा सकता है।
अंततः अन्नाई विचार :-
झुकता तो वही है जिसमे जान होती है,
अकड़ना तो मूर्ख की पहचान होती है।
mangala sing