रविवार, 28 अगस्त 2011

पुलिस वाला मोटर सायकिल वाले से १०० रुपये ले रहा है क़ी उसने हेमंत नहीं

ये ब्लाग बना कर आपने अच्छा काम किया.. मैंने २२ साल पहले काम करना बंद कर दिया और अभी तक मेरे बच्चे मुझे आराम से पाल रहे हैं. उनकी शिक्षा अच्छी हुई और ईमानदारी से का, किया, इस कारन अभी मुझे कोई खास तकलीफ नहीं है. परन्तु सामने देख टा हूँ क़ी पुलिस वाला मोटर सायकिल वाले से १०० रुपये ले रहा है क़ी उसने हेमंत नहीं लगा रखा है. हेलमेट बनाने वाली कम्पनी के पास पैसा है और सरकार का पेट भर सकती है. उसके बाद वह उच्चतम न्यायलय जा कर ,बड़े कीमती वकीलों के जरिये कहती है क़ी मोटर सायकिल चलने वाले के सर क़ी बड़ी कीमत है. सर के फ्य्टने से ही मौत होती है तो मणि बात है क़ी न्यायालय इसको कैसे ख़ारिज करेगा. नयायालय के सामने कोई दूसरा पक्ष है ही नहीं, और खड़ा भी है तो वह उस का ही ख़रीदा आदमी या वकील है.. मुझे ये तकलीफ है क़ी पैसे वाले न तो मोटर सायकिल स्कूटर पर चलते हैं, न आता पिसने जाते है, न स्च्कुल कलेग जाते हैं. न बिज्लिपनी का बिल जमा करने जाते हैं, न पोस्ट ऑफिस जाते है.तात्पर्य यह है क़ी गावं का किसान मोटर सायकिल पर पिचर भारी सब्जी का बोझा खेत से ला रहा है , पानी बरस रहा है, या नहीं बरस रहा है कण बंद है, मोटे स्किल क़ी फट फट क़ी आवाज मै सुने नहीं पड़ता, और वह घूमता है और किसी से टक्कर कहता है. मरता तो नहीं पर हाथ पैर टूट जाते हैं .स्कुल, कालेज, नेंक, लाइब्रेरी , फल वाला, सब जगह टॉप ही टॉप रखे होंगे तो काम कैसे होगा, या फिर उसे मोटर स्किल पर ही छोड़ दिया तो फिर जैसे रेल मै टला चेन बंधते हैं उसे बंद करे और खोले येही काम कर्ता रहे/ न्याय ले के जज साहिब, या पर्लिअमेंट के सांसद जो आजकल साहब कहलाते हैं, जिन्हें मुफ्त क़ी कर और सब समंमिलता है, कभी सोचये है क़ी जनता को क्या परेशी होती है. उनके पास तो ५ १० नौजर हैं, आज जब से ये सबसे गन्दा काम जिसे नरेगा कहते हैं, काम करने वाले नहीं मिल रहे, और मिलते हैं तो २०० से ३०० रुपये रोक, उस पर भी काम नहीं करते . नरेगा क़ी वजह से आज पांच सर पांच बोलेरो गाड़ी मै घूमता है और मै ८० रुपये लीटर मै सब्जी लेने नहीं जा सकता.कहाँ से ईमानदारी आयेगी , सब तरफ चोर ही चोरी है, पेट्रोल भरने के लिए छेने खिची जा रही है,पेट्रोल पम्प लूटे जा रहे हैं आदि अदू/

दूसरा जनता से जुदा मसला है क़ी बीच शहर मै कर मै सीट बेल्ट बंधो नहीं तो ५०० रुपये जुरमाना दो. क्यों, आप क़ी कर जब टकराएगी तो आप स्टेरिंग से उलझ जायेंगे, अधिक रफ़्तार होगी तो आगे का शीशा तोड़ कर बाहर निकल जायेंगे और मर जायेंगे. ठीक हैसरकार को या जज साहब चाहते है हम किसू दुर्घटना के शिकार हो तो का, से का, शारीरिक नुकसान हो. कुआँ आदमी अपनी गाड़ी को जान बुझ कर टक्कर मरेगा और हेज पैर या वहती तुद्द्वायेगा.. सरकार या जज साहब को चाहिए बे इसी शिक्षा का प्रबंध करे क़ी चालक आपने लाभ नुकसान को समझे, ये ५०० और फिर पुलिस वाला या यातायात वाले को १०० रुपये दे कर क्या खूब काम हो रहा है.
लोक सभा और राज्य सभा मै बैठे सांसद मात्र व्हिल्लाने और तोड़ फोड़ करने मै ही लगे हैं. पर्तिदिन उनके घर एक ट्रक आता है सरकारी प्रेस से जिसमे होते हैं भारी भारी पोथे . अरबों रुपियों का कागज और श्याही लगती है परन्तु मैंने एक भी सांसद या विधायक को एक पन्ना भी पढ़ते नहीं देखा.

संसद या विधान सभा मै बिल पर बिल आते हैं एक दिन मै १५ पास भी हो जाते हैं और पता ही नहीं क्या पास हुआ म बस थोप दिया जनता पर . अतः ये सारे कानून इतने चिढाने वाले हैं क़ी अब जनता ट्रस्ट हो गई है. स्तिथि ये है क़ी जमता क़ी रु लिए बगैर कानून बनते रहे तो कानून बनाने वालों क़ी पिटाई शुरू होगी
ashutosh tiwari tiwari.ashutosh2@gmail.com

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